हमें भक्ति किस प्रकार से तथा किसकी करनी चाहिए?
देवी देवताओं की इतनी भक्ति करते हैं फिर भी दुखी क्यों है? हर व्यक्ति किसी न किसी देवी देवता की भक्ति जरूर करता है और उनको अपने तन मन धन से अपनी पूरी लगन से उनकी भक्ति करते हैं। फिर भी उनके जीवन में कई प्रकार के कष्ट होते हैं ,उनको कई कठिनाइयों से गुजरना पड़ता है। इतने भक्ति करने के बाद भी कोई लाभ प्राप्त ना हो तो वह भक्ति किसी काम की नही होती है।भक्ति तो वह होती है जिसको करने से व्यक्ति के सारे कष्ट तथा कठिनाइयां दूर हो जाती है ।वर्तमान में लोग कई प्रकार की अंधश्रद्धा में फंसे हुए हैं उनके चलते कई आडंबर करते हैं, जोकि शास्त्र विरुद्ध साधना है अर्थात गीता में भी बताया गया है कि "जो शास्त्र विरुद्ध मनमाना आचरण करता है उसकी ना तो कोई गति होती है और ना ही उसको मोक्ष प्राप्त होता है"
सत भक्ति हमें किस प्रकार से मिल सकती है? हमें सत साधना कौन बता सकता है?लोगों के मन में इस तरह के कई प्रकार के प्रश्न उठते हैं। लेकिन कभी हमने हमारे सद्ग्रंथों को खोलकर कभी भी किसी भी संत या गुरु के वचनों से मिला कर नहीं देखा कि यह सत्य बता रहे हैं या मनमानी भक्ति बता रहे हैं ।
सत साधना के बारे में जानने के लिए अवश्य देखिए जगतगुरु तत्वदर्शी संत रामपाल जी महाराज के मंगल प्रवचन साधना टीवी पर 7:30 से 8:30 बजे तक। रामपाल जी महाराज ही वर्तमान समय में एक ऐसे संत हैं जो शास्त्र के अनुसार तथा साधना बताते हैं। कई लोगों ने वेदों को खोलकर मिलाकर भी देखा और परिणाम में आया कि संत रामपाल जी महाराज वेदों के अनुसार भक्ति बताते हैं और जो वेदों के अनुसार बताते हैं वही पूर्ण संत कहलाते हैं हमारी गीता में भी लिखा गया है "वह गुरु पूरा कहावे ,दो अक्षर का भेद बतावे। एक लखावे एक छुडावे ,वो प्राणी को निज घर को पावे।। गीता में पूर्ण गुरु की पहचान बताई गई है कि जो संत उल्टे लटके पीपल रूपी वृक्ष को सार सहित समझाता है तो वहीं पूर्ण गुरु कहलाता है और संत रामपाल जी महाराज ने उल्टे लटके पीपल वृक्ष को सहित समझाया तथा परिभाषित किया।
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